इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी में महिलाओं की संख्या बढ़ाने से भारत में हैल्थकेयर की कमियाँ दूर होंगी’’ – डॉ. तान्या यादव
लखनऊ: यूटेराईन फायब्रॉयड्स पूरी दुनिया में स्वास्थ्य की एक बड़ी समस्या है। भारत में 20 से 40 साल के बीच की 37 प्रतिशत महिलाओं और 40 से 59 साल की 57 प्रतिशत महिलाओं को यूटेराईन फायब्रॉयड है। पारंपरिक रूप से इसका इलाज हिस्टेरेक्टोमी आदि सर्जरी द्वारा किया जाता है। पर चीरे का निशान लगने, खून बहने और फर्टिलिटी खत्म होने के भावनात्मक बोझ के कारण महिलाएं यह सर्जरी करवाने से झिझकती हैं।
लेकिन यूटेराईन फायब्रॉयड के इलाज में यूटेराईन फायब्रॉयड एम्बोलाईज़ेशन (यूएफई) ने ज्यादा सुरक्षित और प्रभावशाली विकल्प उपलब्ध करा दिया है। यह एक मिनिमली इन्वेज़िव सर्जरी है, जो विशेषज्ञ इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट (आईआर) द्वारा की जाती है। आईआर मिनिमली इन्वेज़िव तकनीकों में विशेषज्ञ होते हैं, और इस विधि द्वारा अनेक बीमारियों का इलाज करने में सक्षम होते हैं।
लखनऊ में संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंसेज़ (एसजीपीजीआई) की असिस्टैंट प्रोफेसर, डॉ. तान्या यादव ने बताया, ‘‘भारत में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी द्वारा लिवर के ट्यूमर और एंडोवैस्कुलर एन्यूरिज़्म रिपेयर के लिए ट्रांसआर्टेरियल कीमोएंबोलाईज़ेशन जैसे जटिल उपचार किए जा रहे हैं, जिससे प्रदर्शित होता है कि हम मरीज की केयर में कितनी उन्नति कर रहे हैं। मैं स्वयं फायब्रॉयड्स के लिए यूटेराईन आर्टरी एंबोलाईज़ेशन जैसी प्रक्रियाओं से इलाज करती हूँ। यह महिलाओं के लिए एक कम इन्वेज़िव विकल्प है।”
उन्होंने आगे बताया, “इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी में महिला के रूप में आगे बढ़ने में मेरे सामने कई चुनौतियाँ आईं, पर मुझे बड़े अवसर भी दिखाई दिए हैं। मैं डायबिटिक फुट का इलाज करके अंगों को बचाने में एंजियोप्लास्टी का उपयोग करना चाहती हूँ। इस क्षेत्र में ज्यादा महिलाओं को लाने के लिए इन तकनीकी पहलुओं को उजागर करना होगा, तथा आरएफ एब्लेशन जैसी प्रक्रियाओं में विशेषज्ञ प्रशिक्षण देना होगा। साथ ही मेंटरशिप का अनुकूल वातावरण भी बनाना होगा। मेरे सफर ने दिखा दिया है कि उचित सहयोग की मदद से महिलाएं इस क्षेत्र में नेतृत्व कर सकती हैं, और आईआर से क्या हासिल हो सकता है, इसकी सीमाएं बढ़ा सकती हैं।’’
भारत में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी लगातार प्रगति कर रही है। लेकिन इस विकसित होती हुई स्पेशियल्टी में आने के लिए और ज्यादा महिलाओं को सहयोग व प्रेरणा दिए जाने की आवश्यकता है। जेनी एम. गांधी द्वारा किए गए एक अध्ययन के मुताबिक यूनाईटेड किंगडम में आईआर कंसल्टैंट्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 11 प्रतिशत, अमेरिका में 34 प्रतिशत और भारत में केवल 3.5 प्रतिशत है। इस क्षेत्र में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर हम मरीज की केयर और हैल्थकेयर में इनोवेशन की संभावनाएं बढ़ा सकते हैं।