बाघों-गुलदारों को संरक्षित सूची से बाहर करे सरकार

हल्द्वानी। वन्यजीवों से इंसानों, फसलों और मवेशियों को सुरक्षा देने समेत विभिन्न मसलों पर कानिया जनसम्मेलन में हिंसक वन्यजीवों बाघ और गुलदार की संख्या जरूरत से ज्यादा होने पर इसे संरक्षित सूची से बाहर करने की मांग की गई। रविवार को ग्रामीणों की संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से राज्य जनसम्मेलन में निर्णय लिया कि 22 फरवरी से वन कानूनों में बदलाव के लिए उत्तराखंड के सांसदों और विधायकों के कार्यालयों पर धरना-प्रदर्शन भी किए जाएंगे। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को भी मांग पत्र दिया जाएगा। वहीं दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में प्रस्ताव भी पारित हुआ।
सम्मेलन में बाघ, गुलदार और जंगली सुअर को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1973 की संरक्षित प्रजाति सूची से बाहर करने की मुख्य मांग रही। वक्ताओं ने इसके पक्ष में तर्क रखे कि उत्तराखंड में बाघों की संख्या बढ़कर 560 और गुलदार की 3 हजार से ऊपर है। अब ये विलुप्त प्रजाति नहीं है। इसलिए सरकार राज्य से इन्हें दूसरी जगह शिफ्ट करे या दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर बैलेंस हंटिंग कराई जाए। प्रतिनिधियों ने हिंसक जानवरों के आबादी क्षेत्र में आने पर इन्हें पकड़ने या मारने का अधिकार मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के बजाय रेंज स्तर के अधिकारी या जनप्रतिनिधि को देने की मांग की। संघर्ष समिति के ललित उप्रेती ने कहा कि जनता पिछले 3 महीने से कॉर्बेट पार्क क्षेत्र में हमलावर बाघ को पकड़ने या मारे जाने की मांग कर रही है, हमलावर तो नहीं मरा, लेकिन तीन माह में चार मौतें हो गईं। चेताया कि तीन दिन में यदि बाघ नहीं पकड़ा या नहीं मारा गया तो ग्रामीण अनिश्चितकाल के लिए कॉर्बेट पार्क बंद करने को मजबूर हो सकते हैं। सम्मेलन में ऊधमसिंह नगर के काशीपुर से लेकर भीमताल, हल्द्वानी, नैनीताल से भी लोग पहुंचे।